शनिवार, 28 जनवरी 2012

पिलोरिया--कहानी --कृष्णशंकर सोनाने

पिलोरिया

‘‘ तुम जिनके लिए प्रज्यापत्य जैसा कठिन व्रत कर रहे हो वो कभी भी तुम्हारे लिए चिन्तित नहीं होती होगी । मेरा कहना मानो तो प्रज्यापत्य व्रत का समापन करा दो ।‘‘
‘‘ नहीं मित्र , हम कदाचित प्रज्यापत्य व्रत को भंग नहीं करेंगे । एक बार किया गया व्रत भंग करना अनुचित तो है ही साथ में अपराध भी है ।‘‘
‘‘ किन्तु मित्र , हम जानते है कि तुम्हारी ‘‘वो‘‘ तुम्हें स्वीकार नहीं करेगी।‘‘
‘‘ हाँ,जानता हूँ लेकिन हमारी महत्वाकांक्षा केवल उनके सान्निध्य की है। उनके निकट रहने से हमें आभास होता है कि मानो पीडि़त हृदय पर उनके कोमल स्पर्श का मखमली मरहम लग गया हो ।‘‘
‘‘कदाचित मित्र, तुम उस पाषाण-हृदय को पहचान जाते ।‘‘
‘‘ तुम्हें मेरे उनके प्रति पाषाण-हृदय कहना उचित नहीं है मित्र ! मेरे ‘‘वे‘‘पाषाण-हृदय नहीं है अपितु वे अज्ञानी है और भीरू भी । संभवतः तुमने मेरे ‘‘उनको‘‘ अभी तक जाना नहीं है।‘‘
‘‘ क्षमा करें मित्र ! लेकिन तुम्हारे ‘‘वो‘‘ क्या नाम है उनका ?‘‘
‘‘ पीएल ,बस, इतना ही समझ लो ।‘‘
‘‘ हाँ, पीएल ही सही लेकिन वे तुमसे पे्रम नहीं करती ।‘‘
‘‘ जानता हूँ मित्र ,हमारी पीएल हमसे पे्रम नहीं करती किन्तु उनके प्रति हमारी आसक्ति,आकर्षण और समर्पण आखिर यह सब.......‘‘
अविनाश की आँखों में अनायास आँसू भर आये । कण्ठ भर जाने से अविनाश आँसुओं को रोक नहीं पाये । अविनाश ,ब्रह्मस्वरूप के कांधों पर सिर रखकर फूट-फूटकर रो पड़े।
दो वर्ष पूर्व अविनाश अपने निजी आवास के सिलसिले में कल्पतरू अपार्टमेन्ट देखने के लिए अपने मित्र ब्रह्मस्वरूप के साथ गर्मियों के दिनों में गये थे । कल्पतरू अपार्टमेन्ट के व्दितीय तल पर जिस गृह को देखना था ,ठीक उसी के ठीक सामने पीएल रहा करती थी । संयोगवश उन दोनों ने पीएल के घर ही जाकर सम्पर्क किया था । कहते है कि विधि का विधान ही निराला होता है । कौन जातना था कि अविनाश,पीएल के प्रति मोहित हो जाएंगे और अपने तन मन की सुधि खो बैठेंगे । पहली ही मुलाकात में अविनाश, पीएल को निर्निमेष देखते रह गए थे । मानो पीएल को युगों-युगों से जानते हो । जैसे युगो-युगों से अविनाश को पीएल की तलाश थी और वह आज अविनाश के सामने साक्षात उपस्थित थी ।
‘‘क्या देख रहे हैं आप ?‘‘
इस प्रश्न का उत्तर अविनाश के पास नहीं था फिर भी उसने साहस किया ।
‘‘ मुझे लगता है आपको बहुत पहले से जानता हूँ लेकिन कैसे ,मुझे ज्ञात नहीं ।‘‘
पीएल सिर्फ मुस्करा दी । अविनाश को पीएल के मुस्कराने से लगा जैसे सावन के महिने में फूलों की सुखसद बरसात हो आई हो ।
‘‘ अच्छा जी ! जाने की आज्ञा दीजिए । नमस्ते !!‘‘
‘‘ नमस्ते ! फिर कभी आइयेगा ।‘‘
पीएल करबद्ध हो मुस्करा दी । मोटरसाइकिल पर सवार होते समय ब्रह्मस्वरूप विस्मित थे कि आज अविनाश इतने प्रसन्न क्यो है ? ब्रह्मस्वरूप,अविनाश की मनोभावनाओं को समझने का प्रयास कर रहे थे ।
‘‘ बीएस ! जानते हो इस सुन्दरी को मैं कब से जानता हूँ ?‘‘
‘‘युगों-युगों से , है न !‘‘
‘‘ तुम कटाक्ष कर रहे हो लेकिन यह अटल सत्य है कि मैं उनको युगों से जानता हूँ । संभवतः अब तक मुझे इनकी ही तलाश थी । एक बात कहूँ ?‘‘
‘‘ कहिए ।‘‘
ब्रह्मस्वरूप को अविनाश बीएस कहा करते थे । क्योंकि ब्रह्मस्वरूप बहुत ही अटपटा नाम लगता था । बीएस का प्रश्न सपाट था किन्तु अविनाश के हृदय में आनन्द की हिलोर उठ रही थी ।
‘‘ अब हमारी हार्दिक अभिलाषा है कि हम इनके निकट आकर अपना सम्पूर्ण जीवन इनके आंचल में व्यतीत कर दें ।‘‘
और अविनाश ने ऐसा ही किया । जिस किसी तरह से कल्पतरू अपार्टमेन्टस में ठीक पीएल के गृह के सामने अपने लिए एक गृह आवंटित करवा लिया ।
समय व्यतीत होते पता नहीं लगा । आहिस्ता-आहिस्ता अविनाश अपने हृदय में युगों से छिपी अभिलाषाओं को पीएल पर निछावर करने लगे लेकिन अविनाश ने पीएल पर अपने हृदय में लुके-छिपे प्रेम को उजागर नहीं होने दिया । अविनाश को भय था कि पीएल के समक्ष हृदय की भावनाओं को उजागर कर देने से पीएल का सान्निध्य विछिन्न हो जायेगा । समय के साथ-साथ अविनाश, पीएल के बहुत निकट पहुँच गए।
‘‘ आप मेरा इतना अधिक खयाल क्यों रखते हो अविनाश ?‘‘
पीएल ने एक दिन अनायास अविनाश से प्रश्न कर ही लिया । अविनाश चुप रहे । वे मन ही मन सोचने लगे,यदि पीएल के समक्ष हृदय के उदगार प्रगट कर दिए तो भय है कि पीएल इन कोमल रिश्तों को दुत्कार दें । वे संक्षिप्त सा उत्तर देकर रह गए-
‘‘ मुझे आपकी सेवा करना अच्छा लगता है । मेरा अपना है ही कौन जिनकी सेवा कर मैं अपने हृदय का भार कम कर सकूँ ।‘‘
अविनाश के उत्तर से पीएल के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएं उभर आई । वे धन्य धन्य हो गए कि पीएल उनकी सेवा से प्रसन्न है ।
जिस पे्रम में सेवा भावना,समर्पण की अटूट अभिलाषा और त्याग का पुट सम्मिलित होता है, वह पे्रम वास्तव में ईश्वर का महाप्रसाद होता है । ऐसा समर्पित प्रेम प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होना दुर्लभ है । कहा जाता है कि पे्रम कभी किया नहीं जाता अपितु हो जाता है । प्रेम की कोई आयु नहीं होती । किसी भी आयु में किसी के भी प्रति हृदय के किसी कोने में पे्रम के अंकुर प्रस्फुटित हो सकते हैं । अविनाश के साथ ऐसा ही हुआ । उन्हें क्या पता था कि जिन्दगी के किसी मोड़ पर अनायास पीएल से भेंट होगी और हृदय के किसी कोने में पे्रम का यह नन्हा सा पौधा स्नेह के आंचल में लहलहाने लग जाएगा ।
अप्रत्यक्ष रूप से पे्रम के अंकुर अविनाश और पीएल दोनों के हृदय में
धीरे-धीरे पनपते रहे । प्रत्यक्ष रूप से पे्रम प्रदर्शित करना दोनों के लिए दुष्कर था । पीएल के लिए भी मर्यादा का उल्लंघन करना अत्यन्त कठिन था । दोनों अपनी कोमल भावनाओं को प्रत्यक्ष करने में संकोच करते रहे । लेकिन सृष्टि के उपवन में खिले पुष्प की सुगन्ध को कौन बांध सकता है। उपवन में खिले पुष्प की सुगन्ध चारो दिशाओं मेें फैलना स्वाभाविक है और ऐसा ही हुआ । पीएल की सखी अनिता को अविनाश के प्रणय निवेदन का आभास हो गया । धीरे-धीरे यह सुगन्ध निकट सम्बन्धियों में फैलना प्रारंभ हो गई। प्रणय ज्वार को रोकना कठिन होता है । प्रणय की अग्नि ऐसी होती है, उसे जितनी हवा दोगे वह उतनी ही अधिक तीव्र होती जाती है। बुझने का नाम ही नहीं लेती ।
वसन्त अपने पूर्ण यौवन के साथ ऋतु विहार करने लगा । भंवरे पुष्पों के मकरन्द का पान करने में तन्मय हो गए । दिनकर अपनी किरणंे सम्पूर्ण प्रकृति के अंगों को स्पर्श कर फैला रहा था । मन्द-मन्द मलयाचल की मधुर बयार हृदय को उन्मादित किये जा रही थी । पलाश अपने पूर्ण यौवन को बिखेर रहा था और अविनाया-पीएल का तृषित व्याकुल हृदय मिलन के लिए व्याकुल हो रहा था किन्तु अपने तृषित हृदय के उद्गारों को प्रिय के समक्ष कैसे प्रगट करें ? इसकी पीड़ा बार-बार हृदय को कचोटने लगी । अपने ही बिल्कुल निकट बैठी पीएल के केशपाश में अंगुलियाँ फेरते हुए अविनाश ने अपने प्रिय के माथे पर चुम्बन ऐसे जड़ दिया जैसे कोई निष्पाप पिता अपनी पुत्री के कपोलों पर चुम्बन जड़ देता है। मर्यादाओं का उल्लंघन करना अविनाश के बस से बाहर था तो पीएल अविनाश के कोमल स्नेहमय स्पर्श को पृथक करने में असमर्थ थी। पीएल मुस्करा दी ।
‘‘ अविनाश ! मेरी मानो तो तुम किसी अच्छी सी लड़की से विवाह कर लो । बहुत अच्छा रहेगा ।‘‘
‘‘ नहीं जी , मन नहीं चाहता । बस एक निवेदन है ।‘‘
‘‘ वह क्या ?‘‘
‘‘ मुझे अपने आंचल में ही रहने दो । मेरे लिए इतना पर्याप्त है।‘‘
‘‘ तुम पागल हो गए हो । मै तुम्हारा विवाह करवा देती हूँ ।‘‘
‘‘ किन्तु आपके समान कोई नहीं मिलेगा ।किल्कुल आपके जैसी..‘‘
पीएल के अधरो ंपर इन्द्र्रधनुष के समान लम्बी मुस्कान उभर आई और वह खिलखिला पड़ी ।गुनगुनाने लगी -
‘‘ आप जैसा कोई मेरी जिन्दगी में आए तो बात बन जाएं ...‘‘?
‘‘ आपने ठीक ही कहा, न कोई आपकी जैसी लड़की मिलेगी और न हम विवाह करेंगे ।‘‘
पीएल ,अविनाश की इस बात पर खिलखिलाकर हंस पड़ी ।
‘‘ आप अपने हृदय की भावनाओ को अच्छी तरह प्रस्तुत करते हो लेकिन आप मुझे नहीं पा सकते ।‘‘
‘‘ कोई बात नहीं । आपके आंचल का सहारा ही मेरे लिए पर्याप्त है।‘‘
भावनाओं के आवेश में अविनाश ने अनायास झुककर पीएल के चरणों पर अपने अधरों को रखकर चूम लिया ।
‘‘ आप मुझसे इतना पे्रम करते हो लेकिन मैं विवाहिता हूँ और जो उचित नहीं उसे कैसे स्वीकार कर सकती हूँ ।‘‘
‘‘ हमें केवल आपके आंचल का सहारा चाहिए और कुछ भी नहीं । हम सारा जीवन आपके सहारे व्यतीत कर देंगे ।‘‘
पीएल मोम की तरह पीघल गई । अविनाश के हाथों को अपने हाथंो में ले सान्त्वना भरे लहजे में बोली-
‘‘मैं सारा जीवन आपके साथ हूँ अवि....आप चिन्ता न करें लेकिन मुझे भी विवाहित जीवन का पालन करना होगा ।‘‘
‘‘ हमें कोई आपत्ति नहीं । आप जैसे रखोगे वैसे हम रहेंगे ।‘‘
‘‘ तो फिर मेरा कहना मानना होगा ।‘‘
‘‘ हम आपके प्रत्येक आदेश का पालन करेंगे ।‘‘
अपने हाथों को पीएल के हाथो से अविनाश पृथक नहीं करना चाहते थे । इसलिए उन्होंने पीएल के हाथांे को अपने वक्ष से लगा लिया और आँखें मूँद ली । अनायास अविनाश की आँखांे से अजस्र अश्रु धाराएं बह निकली ।
समस्त विश्व में पे्रम ही एक ऐसा तत्व है जो किसी बन्धन, किसी मर्यादा, किसी विधान किसी जाति और धर्म और बुद्धि और ज्ञान को स्वीकार नहीं करता । चाहे मीरा-श्याम हो,बाजीराव-मस्तानी हो अथवा बच्चन-तेजी हो । पे्रम अपने विशाल हृदय में निर्भिकता और अत्यन्त कोमल होकर पुष्प की भांति तूफान में वक्ष ताने खड़ा रहता है ।
यह भी अटल सत्य है कि सच्चे पे्रमी कभी भी मिल नहीं पाते । इतिहास साक्षी है कि बाजीराव-मस्तानी, हीर-रांझा, शीरी-फरहाद और पुरूरवा-उर्वशी कभी एक दूसरे को पा नहीं सके । यही स्थिति अविनाश और पीएल के सामने श्ूार्पणखा के समान विकराल मुख पसार कर खड़ी हो गई।.......
प्रातः रवि की प्रथम किरणों के साथ अविनाश आज पीएल के समक्ष अपने हृदय की अभिलाषा अभिव्यक्त करने के उद्देश्य से फूलों का एक सुन्दर गुलदस्ता लिए पहुँच गया । पीएल पिछली रात से अस्वस्थ्य होने के कारण शैया पर लेटी हुई थी । अविनाश गुलदस्ता पीएल के पैरों पर रख अधरों से पैरों को चूम लिया । पैरों पर स्पर्श का आभास पा पीएल ने धीरे-धीरे नेत्र खोले । सामने अविनाश को खड़ा पाया ।
‘‘ आपने यह क्या किया ?‘‘
‘‘ अपने भगवान के श्रीचरणों में अपना हृदय प्रस्तुत किया है ।‘‘
‘‘ पागल हो , पूरे पागल ।‘‘
अविनाश मुस्करा भर दिए और पीएल के सिरहाने बैठ केशों में अंगुलियाँ फेरने लगे ।
‘‘ ओह ! आपको तो ज्वर है ।‘‘
‘‘ नहीं ,थोड़ी सी हरारत है , कम हो जाएगी । सिर में पीड़ा हो रही है।‘‘
‘‘ लाओ , सिर दबा दूँ ।‘‘
अविनाश आहिस्ता-आहिस्ता पीएल के माथे को दबाने लगे । पीएल नेत्र मूँद निश्चेष्ट लेटी रही । बहुत देर तक अविनाश,पीएल के माथे को दबाते रहे ।
‘‘ लाओ पैर .....‘‘
इन्कार किए बग़ैर पीएल ने अपने दोनों पैर अविनाश की ओर बढ़ा दिए । अविनाश धन्य हो गए । पीएल के श्रीचरणो को अपने गोद में रख लिया । थोड़ा झुके और आहिस्ता से पीएल के पैरों को चूम लिया । पीएल ने कोई प्रतिकार नहीं किया । वह निश्चेष्ट लेटी रही । अविनाश स्वयं को धन्य समझने लगे । आत्मा से किया गया पे्रम कभी भी कलुषित भावनाओं को जन्म नहीं देता अपितु निश्चल पे्रम सेवा,त्याग,समर्पण से ओतप्रोत होता है । हृदय से किया गया पावन पे्रम व्यक्ति को भावविभोर कर देता है और उसे परमानन्द की उपलब्धि होने लगती है । अविनाश के हृदय में पीएल के प्रति प्रगाढ़ पे्रम की गंगा उमड़ने लगी । दूसरी ओर पीएल के हृदय में सूक्ष्म रूप से अनियंत्रित पे्रम का ज्वार उमड़ उठा । अविनाश का पावन पे्रम प्रिय के चरणों को वक्ष से लगाकर धन्य-धन्य हो रहा था तो पीएल का पे्रम अविनाश को ललकार रहा था । कहा जाता है कि नारी में पे्रम का अन्तिम बिन्दु काम होता है। लेकिन अविनाश पावन पे्रम के उन्माद में एक नारी के कामोन्माद को पहचान नहीं पा रहे थे । वे तो पे्रम पूजन में इतने मस्त थे कि एक औरत एकान्त में पुरूष के संसर्ग में लिप्त है किन्तु पुरूष को प्रकृति की अनौखी लिप्सा का आभास नहीं । पवित्र पे्रम अपनी कसौटी पर सत्य ही उतरता है ,चाहे नारी जो कुछ भी समझे । क्या यह अविनाश की जीत है अथवा हार ? विधाता ही जाने किन्तु अविनाश अपने पे्रम को कलुषित नहीं होने देना चाहते थे । पे्रम में हार-जीत समान होती है ।
पावन पे्रम की सदा विजय होती है और वह सर्वोच्च शिखर पर पहुँचता है । जबकि इसके विपरीत लेशमात्र की कमी होने पर प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न हो सकती है । किन्तु काम-रति के खेल में पावन पे्रम का कोई स्थान नहीं होता । नियति के विधान के अनुसार प्रकृति ने प्रतिकूल खेल रचना प्रारंभ कर दी । अविनाश और पीएल के बीच भूचाल उत्पन्न हो गया ।
भूचाल,भूमि-धरातल को यहाँ तक कि पे्रम के मूलाधार को झटका दे गया और सूखा दिया उन खिलते हुए पुष्पों को जो उपवन में मधुर बयार बिखेर रहे थे और मदमस्त भौंरों को उन्मादित कर रहे थे । हिला दिया उस पूजारी को जो अपने देव की पूजा मेें मस्त था और समूचे विश्व को विस्मृत कर रहा था । भक्त को भगवान से पृथक करने में असुरी शक्तियों का जितना बल होता है उतना बल पे्रमियों को पृथक करने में अविश्वसनीय तत्वों का होता है।
अर्पणा का पदार्पण असुरी शक्तियों को प्रबल करने में सहयोग प्रदान करने लगा । पूजारी को अपने देव से पृथक करने में अर्पणा ने विशेष भूमिका निभाई। पीएल के प्रति अविनाश की प्रणयमयी कोमल भावनाओं को अर्पणा भलिभांति जानती थी जिसके कारण अविनाश की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने लगी । परिणामस्वरूप पीएल आहिस्ता-आहिस्ता अविनाश से दूर रहने लगी लेकिन यह दूरी हृदय की दूरियों को कम न कर सकी ।
एक शाम जब अविनाश बच्चों को पढ़ा रहे थे ,पीएल उनके बिल्कुल पास बैठी हरी सब्जियाँ काट रही थी । बीच-बीच में अविनाश से बातें भी कर रही थी ।
‘‘ अवि ! तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो ?‘‘
‘‘क्योंकि हम आपसे पे्रम करते हैं । अपने पावन हृदय से आपको पूजते हैं लेकिन आपसे चाहते कुछ नहीं । केवल आपके आंचल के सहारे रहना चाहते हैं ।‘‘
‘‘ जो संभव नहीं है आप उसे नहीं पा सकते ।‘‘
‘‘ मुझे पाने की कामना नहीं है लेकिन ऐसी कोई बात है तो एक दिन हम आपक पा ही लेंगे ।‘‘
‘‘ ऐसा कभी नहीं हो सकता ।‘‘
‘‘ चिन्ता की कोई बात नहीं । लेकिन हमें अपने से दूर नहीं करना । बस यही प्रार्थना है । यदि स्वीकार नहीं कर सकते हो तो हमें ज़हर दे दो । आपसे बिछड़ने से बेहतर होगा हम मृत्यु को गले लगा लें ।‘‘
अविनाश का कण्ठ अवरूद्ध हो गया और नेत्र भर आएं। उनका हृदय चाह रहा था,इस वक्त वे पीएल के आंचल में अपना मुख छिपाकर फूट-फूटकर रो लें किन्तु उनका साहस नहीं हो पाया । वे रूमाल से अपने आँसू पोंछते हुए बाहर निकल गए ।
इस घटना के उपरान्त लम्बी अवधि तक अविनाश कभी पीएल के सामने नहीं पहुँचे । अपने ठीक सामने के मकान में रहने के बाद भी अविनाश,पीएल को स्पर्श करना तो दूर वे दो शब्द बतियाने के लिए भी व्याकुल होने लगे ।
अर्पणा ने अविनाश की इस कमजोरी का लाभ उठाने में कोई नहीं की । अर्पणा ने पीएल से घनिष्ठता बढ़ा ली । अविनाश सदैव पीएल के खयालों में खोये-खाये अर्पणा से पीएल के विषय में बातें करते रहते । अर्पणा मनगढ़न्त बातें बनाकर पीएल के प्रेम की दुहाई दिया करती । अत्यन्त संवेदनशील होने के कारण अविनाश,पीएल का पे्रम और निकटता पाने के लिए लालायित होने लगे । छटपटाने लगे । एकान्त में बिफर-बिफर कर रोने लगे ।
‘‘ मैं पीएल के लिए प्रज्यापत्य व्रत करना चाहता हूँ अर्पणा ।‘‘
‘‘ यह तो बहुत कठिन व्रत होता है।‘‘
‘‘ हाँ, होता है लेकिन पीएल रूठ गई है उसे मनाने के लिए यह व्रत करना होगा ।‘‘
‘‘ क्या तुम यह व्रत कर पाओगे ।‘‘
‘‘ मैं अपनी पीएल के लिए इससे भी कठिन कोई व्रत होगा तो उसे भी करना चाहूँगा । चाहे मेरे प्राण निकल जाए । इसकी मुझे तनिक भी चिन्ता नहीं ।‘‘
‘‘ जैसा तुम उचित समझो ।‘‘
अविनाश ने बारह दिन का प्रज्यापत्य व्रत प्रारंभ कर दिया। परिणामस्वरूप अविनाश का शरीर अत्यन्त कमजोर हो गया । नेत्र भीतर धंस गए । वक्ष की पसलियाँ बाहर निकल आई । मुखमण्डल निश्तेज हो गया । कुछ ही समय में अविनाश मृत देह की तरह हो गए । शैया पर अर्ध लेटी अवस्था में अविनाश छत की ओर निर्निमेष निहारा करते । उस दिन उनके मित्र बीएस उनके पास बैठे थे ।
‘‘ तुमको इतना कठिन व्रत नहीं करना चाहिए था । आखिर इस व्रत से तुमको क्या लाभ हो सकता है।‘‘
अविनाश के सजल नेत्रों से अश्रु धाराएं बह निकली ।
‘‘ एक बात कहूँ अविनाश ! यदि तुम अन्यथा न समझो ?‘‘
‘‘ क्या कहना चाहते हो । मैं कदाचित अन्यथा नहीं लूँगा ।‘‘
‘‘ तुमको रोग हो गया है भयंकर रोग,जिसकी कोई चिकित्सा नहीं है।‘‘
‘‘ भयंकर रोग ! कौन सा रोग ?‘‘
‘‘ तुमको पीएल का पिलोरिया हो गया है।‘‘
‘‘ पिलोरिया .!‘‘
‘‘ हाँ ! पीएल का पिलोरिया । मैं नहीं जानता पीएल का भावार्थ क्या होता है । लेकिन यह सच है।‘‘
‘‘क्या तुम पीएल का भावार्थ जानना चाहते हो ?‘‘
अविनाश के चेहरे पर वेदना की रेखाएं उभर आई जिसे बीएस अच्छी तरह पढ़ रहे थे किन्तु अविनाश की विकट मानसिक दशा के समक्ष वे चुप रहे ।
‘‘ तो सुनो ,पीएल का शब्दार्थ पे्रमलता होता है । पी फार पे्रम और एल फार लता । पीएल यानी पे्रमलता । यह उनका नाम है बीएस ।‘‘
‘‘ अर्थात् तुम्हारे मकान के सामने.‘‘
‘‘ हाँ ,मैंने तुमको कहा था । शायद मुझे युगों-युगों से इनकी ही तलाश थी लेकिन इस जनम में भी.‘‘
अविनाश इतना कह चुप हो गए ।?
‘‘ अविनाश ! तुम पे्रम में असफल हो गए हो । मैं जानता हूँ तुम्हारा पे्रम सच्चाईयों को छूनेवाला पे्रम है लेकिन खैर, मेरी एक सलाह मानोगे ?‘‘
‘‘ पे्रम सलाह का मोहताज नहीं होता बीएस ।‘‘
‘‘ तो तुम यों ही घुल-घुलकर मर जाओगे पीएल के पिलोरिया में....‘‘

और यह सत्य घटित हो गया । अविनाश, पीएल की याद में घुल-घुलकर मृत्यु को प्राप्त हो गए । कहते हैं आज भी अविनाश की व्याकुल आत्मा पीएल यानी पे्रमलता के वियोग में कल्पतरू अपार्टमेंट के आसपास भटकती रहती है।
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