सोमवार, 16 मई 2011

स्मृति शेष----कमला प्रसाद



तुम सूर्य थे
...राजेन्द्र शर्मा
तुम सूर्य थे हमेशा
मैं तुम्हारा चन्द्रमा
उधार की रोशनी से चमकता हूं रोज़
सूर्यास्त के बाद
चांदनी रात में नौका विहार जैसे
चुराये गये वाक्यों के सहारे
एक स्कूली निबन्ध लिखता हूं
और अब्बल नम्बर कहाता हूं
तमगों से चिथड़ा हुई कमीज़
शान से पहले घूमता हूं तुम्हारी आकाशगंगा में
मेरे चेहरे पर तो तुम्हारी अक्कासी साफ साफ
इतनी कि दूर से दिखाई दे
किसी ने लाड़ से आंजी है काजल बी लकीर
और लगा दिया हो डिठौना
तुम्हारे पीछे पीछे एक गोलार्द्ध से दूसरे गोलार्द्ध
में जाता हूं
तुम्हे धन्यवाद कहने के लिए
बस एक छोटा सा शब्द
जो कभी कहा नहीं
सामना होने पर पीला पड़ जाता हूं
कभी घटता हूं कभी बढ़ जाता हूं ।