शनिवार, 28 जनवरी 2012

आदमी के हक में....संकलन से

जगह

अलावा इसके हो क्या सकता है कि
अब तक न बनवा सका
हृदय में उनके ज़रा सी जगह।
उम्र के उस पड़ाव पर होना चाहिए था
जिस पड़ाव पर वे खड़े है
जिस बात पर वे अड़े हैं
चुनने की अकांक्षा लिए हुए कोई फूल
बासा और उजड़ा हुआ बागान
क्या करेंगे सजाकर वे।
कब का हो जाना चाहिए था निर्णय
या कैद हो जाना चाहिए थी उम्र भर की
या खुल्ला छोड़ दिया जाना चाहिए था
बेलगाम भटकने के लिए।
कम से कम बन ही जानी चाहिए थी अब तक जगह
जिससे पुरसुकून हो सकें
कि कैद कर लिया गया है उम्र भर
कि खुल्ला छोड़ दिया गया हूं सांड की तरह ।
फिर करना चाहता हूं निवेदन
अब तो खुला छोड़ दो दरवाज़ा
आ जा सकूं निस दिन चाहे जब
बनवा सकू एक छोटी सी जगह
हृदय के उनके किसी कोने में।
00 01.07.2007...1ः30 बजे
-जन्म दिन का गणित

माँ ने बताया
जिस दिन तू पैदा हुआ
उस दिन पूनम की सुबह थी
सारा दिन रिमझिम रिमझिम पानी बरस रहा था
गाय,भैंस और बकरियाँ
चरने चली गई थी जंगल
स्कूल की छुट्टियाँ खत्म हो गई थी
पड़ौसी की लड़की
स्कूल जाने लग गई थी
और हाँ ,जिस साल तू पैदा हुआ था
उसी साल पं.जवाहरलाल नेहरू आये थे
उद्घाटन करने कारखाने का
लग गई थी तेरी नाक
हाथों में उनके, और
मुस्करा दिये थे पंडित नेहरू ।
पूरे पचपनवे बरस के दिन
जब ताजमहल को
सातवे अजूबे में
शामिल करने की मूहिम चल रही थी
और निर्णय होना श्शेष रह गया था
सप्ताह का सातवां दिन था
महिने की सातवीं तारीख थी
साल का सातवां महिना था
सदी का सातवां वर्ष था
यानी सभी सात सात सात।
तब मैं अकेला एकान्त में बैठा
लिख रहा हूँ जन्म दिन के गणित की कविता
न केक न केण्डिल न मिठाई
न ही कोई संगी-साथी
और न ही कोई हेप्पी बर्थ डे टू यू ।

07.07.2007शनिवार रात 10.00बजे
ऐसा कौन सा काम

उनके जीने या मरने से
कोई फर्क पड़नेवाला नहीं है
जीये तो जीये अपनी बला से
मरे तो मरे
करना क्या है हमें
किसी के जीने से
कुछ होता हो तो बहुत अच्छी बात है।
मोहल्ले के राधेश्याम की दारू
छुड़वाकर जो किया है काम उसने
काबिल ए तारीफ है
कहां कहां नहीं ले गये
उसके घरवाले उसे
पीर-पैंगम्बर,मठ-मन्दिर
तांत्रिक जानूटोना से लेकर
पूजापाठ व्रत-उपवास करने तक
सारे कर्मकाण्ड कर लिए।
जीना उसका जीना होगा
वर्ना उसके जीने का कोई मतलब नहीं
एक पौधा ही लगाया होता आंगन में
प्याऊ ही खोल दिया होता राहगिरों के लिए
पैंतालीस डीग्री धूप में सूखता हुआ कण्ठ
कम अज कम शीतल हो जाता।
बड़ी भारी क्षति हो जाती
यदि उसके सीने में रहनेवाला पंछी
आकाश की ऊँचाईयों के पार चला जाता
बड़े सम्मान के साथ
स्मशान भू तक चलते साथ-साथ
शहर भर के लोग
देते भीगी पलकों से श्रृद्धांजलि
चढ़ाई जाती मालाएं
उनकी तस्वीर पर
आनेवाले वर्षों में
मनाई जाती एक दिन जयन्ती
कहते भले आदम थे वे।
जीने मरने से
फर्क नहीं पड़ता
परिवार समाज या देश को
होती नहीं कोई क्षति
भूला दिया जाता
बाद दस दिन के
कहनेवाले कह देते
ऐसा कौन सा काम किया है।
29/.6/2007

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