शनिवार, 28 जनवरी 2012

आदमी के हक में..संकलन से--कृष्णशंकर सोनाने

छत

जिस तरह तन को ढंकने के लिए
कपड़ों का होना जरूरी है ।
जिस तरह
लाज रखने के लिए
शर्म का होना लाजमी है ।
जिस तरह
रहस्य ढांकने के लिए
गोपन का होना आवश्यक है ।
जिस तरह
सिर छिपाने के लिए?
छत का होना जरूरी है ।
दीवारों का होना
कोई मायने नहीं रखता
खिड़की दरवाज़ों के बिना
काम चलाया जा सकता है ।
लेकिन
बहुत ही नामुमकिन है
जीवन का
गुजन-बसर होना
छत के बिना ।
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8-दरवाज़ा

बिना दरवाजे के कोई
घर नहीं बनता ।
बाहर से दरवाज़ा
बन्द करना जरूरी नहीं है
घर की दहलीज
पार करना अपशकुन माना जाता है ।
अहं की सांकल,मद की नामपटट्ी
मोह का ताला देख
बिदक जाते हैं लोग
ऐसे में बन्द रखोगे दरवाज़ा तो
दस्तक देंगे ही लोग ।
लोगों के गले में ही
लटके होते हैं दरवाज़े
जहाँ भी जाते हैं
साथ लिए चलते हैं ।
मैं घर बनाऊँ ना बनाऊँ
दरवाज़े में सांकल ताला और
नामपट्टी नहीं होगें
खिड़कियों का तो सवाल ही नहीं
सपने सारे आकर रूक जाते हैं बाहर
खिड़की और दरवाज़ों के
जब भीतर और कोई होता है
और पहरा दे रहे होते
सांकल,ताले और नामपट्टी ।
दरवाज़ों का संबंध होता है
खुले आसमान से
उड़ती रहती जिसमें
राजहंस सी धवल चिडि़या
और सटे होते हैं आंगन
पेड़-पौधे फूल पत्तियाँ
और खिलखिलाते रहते हैं बच्चे ।
दरवाज़े सपने देखते हैं
रख जाए कोई आकर
टिमटिमाता हुआ दीपक
उनकी चैखट पर ।
दरवाज़े होने से
अन्तराल बढ़ जाता है
तेरे,मेरे और उनके बीच
बिछ जाती सन्नाटे की लम्बी चादर
जब कभी तलाश
करनी हो अपनी
अपने से अलग हटकर अलहदा
तोड़ना होगा हमें
घर के सारे दरवाज़े
खोलना होगा हमें
घर की सारी खिड़कियाँ ।
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