शनिवार, 28 जनवरी 2012

आदमी के हक में..संकलन से

चाँद

मेरे जागने से लेकर
सोने तक
वह मुस्तैद रहता है
मेरे साथ ।
जब मैं
सो रहा होता
वह जागते रहता है
जैसे पहरा दे रहा हो
जब मैं
चल रहा होता
वह मेरे साथ-साथ चलने लगता है
मेरे ठहरने पर
वह भी ठहरता है
मैं भले ही थोड़ा सुस्ता लूँ
वह बराबर सजग रहा करता है
सुस्ताना उसने सीखा नहीं
लेकिन जब मैं
जाग जाता हूँ
वह सो जाता है
जागने की तैयारी में
क्योंकि उसे पता है
मेरे सो जाने पर
उसे पहरा देना होगा
मुस्तैद होकर ।
( दिनांक 21.09.2010)

चाहने पर

चाहने पर
कभी चाहा हुआ नहीं होता
अनचाहा हो जाता है।
चाहने पर
यदि चाहा हुआ हो जाय तो
हम कहते हैं
यह तो होना ही था
इसलिए हो गया ।
चाहने पर
न तो राम का अभिषेख हुआ
न ही पाण्डवों को राज्य मिला ।
चाहने पर
कभी नहीं बन पाती कोई कविता
कोई अच्छी सी कहानी
कोई आख्यान ।
चाहने पर
कुछ होना होता तो हो जाता
जैसे कोई राजनेता
लुच्चा,लफंगा,चिढ़ीमार ।
( नवम्बर,2010)

प्रेम करने के लिए

पे्रम करने के लिए
एक प्रिय का होना जरूरी है
जिसकी मांग में
भरा जा सके सिन्दूर
मेरी चुटकी में भरा सिन्दूर
किस मांग में भरूँ
न मैं किसी का प्रिय हूँ
न कोई मेरा प्रिय बना
मुझे तलाश है
एक अदद प्रिय की ।
( 31.12.2010)

जरूरत से ज्यादा

अक्सर लोगों की यह आकांक्षा रहती
कि उनके पास यह भी होता तो
कितना अच्छा होता,या
वह भी होता तो कितना अच्छा होता
इसे और उसे पाने की उनकी आकांक्षा
कुलांचे मारने लगती है,और
उसे पाने के लिए
जी जान से ज्यादा मेहनत करने लगते हैं
और अन्ततः वे उसे पा ही लेते हैं
हालांकि ऐसा नहीं कि
उनके पास वह चीज पहले नहीं थी
लेकिन उनकी आकांक्षा थी
जो चीज उनके पास है
वह बहुत कम है
शायद उनकी जरूरत इससे ज्यादा की है
और यह चीज जरूरत से ज्यादा है
जरूरत से ज्यादा चीज ज़हर बन जाती है।
( दिनांक 03.03.2011)

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