शनिवार, 28 जनवरी 2012

आदमी के हक में..संकलन से

प्यार करने के लिए

कब्र से अच्छी
कोई जगह नहीं होती
जहां मिल जाता है
प्यार करने के लिए
पूरा एकान्त।
कोई देख लेगा
के बहाने
वंचित कर दिया जाता
मैं जानता हूं
यहां भी
कोई नहीं आएगा
प्यार करने के लिए
इसे प्यार का
सुखान्त कहूं
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क्रूरता की संस्कृति

जिस क्रूरता का पता
नहीं चल सका है हमें अभी तक
हमारे बीच आए उसे
काफी लम्बा समय हो गया है।
हम अपने आपको
समझते हैं कुछ ज्यादा ही सभ्य और सुसंस्कृत
यह एक अनूठी मिसाल है
शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व की।
भव्य प्रदर्शन कर
कुण्ठित भावों को उत्सर्जित किया जाना
कूरता की संस्कृति का अपनापन है।
वह समय अब कहाँ रहा
जाने किस चक्रव्यूह में भटक रहा होगा
लगता है अब हम
कुछ ज्यादा ही समझदार हो गए होंगे
प्रतीक्षा कर रहे होंगे
आप हम और सारे विज्ञजन
ऊँट करवट कब बदलेगा और हम शान्तिपूर्ण सो रहे होंगे।
किसी की परवाह किये बग़ैर
शान्तिवन के सरोवर में डूबाए हुए पैर
चैन की बंसी बजा रहे होंगे।
रात हमारे पड़ौसी का बच्चा
रोता रहा सारी रात
माँ के वक्ष का सूख गया होगा दूध
हम आलिंगनबद्ध पड़े रहे
बहकी बहकी सुगन्ध ओढ़े हुए।
पूर्वाग्रहों से सजाए हुए बुके
कड़वी मुस्कराहटों के साथ
कर रहे होगे हम अभिनन्दन
भरी सभा में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच ।
इस छत के नीचे
हम सभी हिंसक हो गए हैं
अहिंसा का पाठ पढ़ाते-पढ़ाते ।
जिस संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं हम
कू्ररतम से क्रूरतम कू्ररता लिए हुए
पता नहीं चल रहा है हम
कहाँ जा रहे है।
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15अगस्त,2007बुधवार

गीत

12-ऐसा लगता है

जब किसी मन्दिर में
छप्पन भोग चढ़ाए जाते हैं
बीसियों को भरपेट भोजन की
संभावनाएं खत्म हो जाती है।
ऐस लगता है
जब कभी वस्त्राभूषण
चढ़ाए जाते मन्दिरों में
बहुत सारे वस्त्रहीन जिस्म
नंगे रह जाते हैं।
ऐसा लगता है
जब तक तुम्हारे लिए
मन्दिर मस्जिद
गुरूव्दारे गिरजे
बनाए जाते रहेंगे
सिर छिपाने दरिद्र नारायण
वंचित होते रहेंगे ।
भूखे को भोजन
न्नगे को वस्त्र
सिर छिपाने छत
मिलने की संभावनाएं
तिरोहित हो रही है
हे प्रभु ! मुझे बता
तुम्हें कितने भोग
और कितने वस्त्राभूषण
और कितनी बार
चढ़ाने पड़ेंगे ।
कब तक छिनता रहेगा
वंचितों के सिरों से छतें ।
11.07.2008 शुक्रवार 2.45 पीएम
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