शनिवार, 28 जनवरी 2012

आदमी के हक में...संकलन से

विश्वास

वह इतना विश्वास करने लगती है कि
उसके विश्वास पर विश्वास
होने लगता है
और उसके विश्वास के विश्वास पर
विश्वास करना ही पड़ता है ।

उसके विश्वास में
इतना विश्वास है कि
अ-विश्वास का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता ।

आखिर उसका विश्वास
इतना विश्वसनीय होता है कि
उस पर विश्वास करना लाजमी है ।

विश्वास की डोर
विश्वास पर टिकी है
देखना
कभी टूटने न पाए ।
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अम्मा

सुबह-सबेरे चार बजे उठती है अम्मा
बर्तन-भाण्डे मांजने के बाद
नल में पानी आते ही
भर लेती है घर के सारे बर्तन भाण्डे ।

ताजे-ताजे पानी से
हाथ मुँह धोकर
दो लोटा निरा पानी पी लेती है
कहती है इससे हाजत अच्छी होती है ।

गैस-चूल्हे पर चाय रखने के बाद
आवाज़ देकर जगाती है
भोर हो रही है
उठो और मुँह-हाथ धो लो बेटे
चूल्हे पर चाय चढ़ा दी है ।

सारा दिन खटकती रहती है अम्मां
कभी कपड़े सूखाने डालती है
कभी दालें,बडि़यां और अचार को दिखाती है धूप
बच्चों के कपड़े लत्ते तह कर रखती है ।

दोपहर तक थक जाती है अम्मां
सिरहाने तकिया रख थोड़ा सुस्ताने लगती है
उठती है बराबर चार बजे
चाय का टेम हो गया है बेटी
घण्टे भर बाद तेरा पप्पा दफ्तर से आएगा
नाश्ते-पानी का बन्दोबस्त कर बेटी ।

अम्मां सुबह से शाम तक यूं ही खटकते रहती है
सारी चिन्ताओं जिम्मेदारियों को अपने सिर लेकर
अपने कत्र्तव्यों का निर्वहन करते हुए ।

जब से ब्याह कर आई है अम्मां
पल भर चैन से बैठी नहीं होगी
रिश्तों की चादर ओढ़े
सबकी खबर लेते हुए ।
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औरत का स्वर्ग

लड़की होना जितना कठिन है
उससे ज्यादा कठिन है
औरत होना ।
लड़की और औरत होने में
बहुत ज्यादा फर्क नहीं है
लड़की तब तक लड़की रहती है
जब तक वह औरत नहीं बन जाती ।
लड़की की परिभाषा और
औरत की परिभाषा भी अलग-अलग होती है
जैसे,
लड़की आग का गोला होती है,तो
औरत बर्फ की शीला होती है
लड़कियाँ जल्दी भभक जाती है
जबकि
औरत धीरे-धीरे पिघलने लगती है ।
लड़की की उष्मा और
औरत की शीतलता में
उतना ही फर्क है
जितना पे्रमिका की उष्मा और
माँ की शीतलता में ।
लड़की को स्पर्श करते ही
झटके से करंट लग जाता है
लेकिन
औरत का स्पर्श बड़ा सुखदायी होता है ।
लड़कियों का स्वर्ग यहीं होता है
वह महकने लगती है
वह चहकने लगती है
बागों,उपवनों और वसन्त में
सुगन्ध बिखेरते हुए ।
औरत का स्वर्ग देखने में नहीं आया
जबकि वह
स्वर्ग रचती है सारी दुनिया के लिए
सिवाय खुद को छोड़कर ।
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