रविवार, 4 अप्रैल 2010

कृष्ण जन्म

थी मध्य निशा की पुनित बेला,औ´
आच्छादित मेघ श्रृंखला व्यापार
रजनिकर मुख छिपा क्षितिज में
घुप् तम पथ था पारावार ।-1

तिमिर में भी ज्योति पूँज आलोड़ित होता
घनन् घनन् घन घनन् घनन् घन मेखला
पार व्योम से झांकता वह चितवन चकोरा
जाने किसका होगा वह चंचल चपल छोरा ।-2

मलयानिल बयार मधुर घ्राँण रंध सुवासित
कौन है वह जो करता हृदय को वििस्मत
कौन है वह जो होता पुलकित बार बार
कौन है वह जो प्रमुदित होना है चाहता
कौन है वह जो होना चाहता सृजनहार ।-3

ऐसे में निपट कौन मौन अस्तित्व लिए
विहंसता सह कुसुमित सा सुकुमार
तड़-तड़ तोड़ लौह बन्ध मुक्त वह
प्रगट हुआ एक शिशु बीच कारागार ।-4

कोमल लघु पावन चरण धरा धर
विभु नयन सम्मुख हो महा-मनोहर
विहंस पड़ी अधराधर मधु मुस्कान
यही होगा इस युग का महान गान ।-5

कोई कल्पनातीत निशा मध्य कर उजियाला
कर अलौकिक तन-रजनि में था उगनेवाला
उस पराशक्ति का अनुभूतिजन्य था विकास
कर रहा था तम का वह पल क्षण उपहास ।-6

जिस काल खण्ड में लोक लीलामय जनमता
भव धनु वितान उस भू पर विभु का तनता
विधि विधान विविधमय वह कर जाता
वह धरा पर उसी क्षण अवतरित हो जाता ।-7

जिस क्षण सांसारिक माया स्वपन टूटता
महाकण्ठ से बरबस युगल गान गूँज उठता
दिग-दिगन्त तक प्रतिध्वनित हो उठती तान
सकल जगत उल्लासित गा उठता वह गान ।-8

जिस क्षितिज से वह मन्द मन्द मुसकाया
विधि ने रच दी अपनी अद्भूत माया
साधुजनों का करने को वह परित्राण
संकल्परत धर्मध्वजा का होगा अभ्युथान ।-9

अवतरण तब उसका जब नाद ब्रºम गुँजाया
हो गई विमोहित वीणा-वादिनी की माया
झंकार उठी दिशा-दसों औ´अखिल ब्रºमाण्ड
विविध कण्ठ ने आवाहन उसका गाया ।-10

अखिल विश्व प्रमुदित उल्लासित हो झूमा
किंकर-गन्धर्व-अप्सराएं मृदंग झाँझ नृत्य होमा
समूह गान स्तुति लय ताल छन्द युगल हो गाए
व्योम अवनि अम्बर तल अनन्त धरा भी घुमा ।-11

खग-मृग-व्याघ्र जीव-जन्तु मानव हृदय हषाZये
लता कुँज वन नद नाल सरोवर अलसाये
नहीं रूकता निरन्तर अल्हादित होता उल्लास
उसके अधरों पर जगमग जगमग होता उजास ।-12

पराजित होना उसने कभी सीखा नहीं
हारने पर भी सदा गुदगुदाता था रहता
कभी चरण रज प्रक्षालन में पीछे हटा नहीं
होकर अपमानित फिर भी वह था मुस्काता ।-13

निकुँज कुँजवन में लुकता छुपता उसका छलवाना
चपल चंचल चतुर चितचोर का चितराना
भला कौन नहीं चाहेगा ऐसे में भुजबन्ध मिलाना
वृषभानुसुता को मधुर मुरली का सुनाना ।-14

मानवता की खारित उसने गान गीता का गाया
जीवन सारा कर उत्सर्जित फिर भी वह मुस्काया
मेरे कृष्ण तुम तो मेरे प्राणों के हो आधार
आओ तो कर लूँ मैं तुमको जी भर के प्यार ।-15

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