कचरा बीननेवाली लड़की भागू
वह टी टी नगर के कूढ़ों पर
मैले कुचैले कपड़ों में
कचरा बीनते फिरती है
गँदली-मैली सी सुन्दर लड़की
मन ही मन गुनगुनाया करती है
कोई रंगीला पे्रम गीत
लरजते हैं उसके अधर
किसी लजीली बात पर
साफ करते हुए कचरा
थिरकने लगते है उसके पैर
मन ही मन मुस्कराती है
उज्ज्वल भविष्य का सपना लिए
मिल ही जाती है
कोई न कोई वस्तु पुराने कपड़ों मे
लिपिस्टिक, नैलपॉलिश या आईब्रो
उड़ने लगते है उसके रेतीले ख्वाब कबूतरों की तरह
प्रयास करती है वह
दूर आकाश में उड़ने का
निहारा करती है वह घरों में
झाँक झाँक कर कौतुहल से
टी व्ही सोफा कूलर रंग बी रंग सजावटे
झट से तोड़ लेती है वह
किसी आँगन में खिला गुलाब
जुड़े में खोंसने का करती है नायाब प्रयास ।
आधी अध्ूरी लिपिस्टिक से
रंग लेती है वह
काले काले मटमैले रतनारे होंठ
टूटे हुए शीशे में लगती है निहारने
अपना रंग रुप
और धीरे से लगा लेती है ठुमका ।
मचलती है वह किसी बात पर
देखती है इधर -उघर
निहार ले उसे कोई
वह भी तो सुन्दर लग रही है
छेड़ जाता है जब कोई उसे
बिखर जाता कचरा उसका
उखड़ जाती होंठों की लाली
उसकी गर्द से भर जाता है सारा शहर
टूट जाता उसका सपना
नहीं बन सकती वह
ऐश्वर्या राय सी सुंदर ।
कचरा बीनते बीनते लड़की
गुनगुनाती है मन ही मन
कोई रंगीला पे्रम गीत
किसी लजीली बात पर ।
---शंकर सोनाने
रविवार, 4 अप्रैल 2010
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