रविवार, 4 अप्रैल 2010

दहेज़ कहानी

दहेज
हालांकि रेल्वे स्टेशन के आसपास भिखारियों की कमी नहीं रहती।जैसे ही रेल्वे स्टेशन के करीब पहुँचते हैं,हमारा सामना तरह.तरह के भिखारियों से होता है।लूले लंगड़े अंधे कोढ़ी बच्चे औरत बूढ़े इत्यादि।रेल्वे स्टेशन के आहाते में ओव्हर ब्रिज पर भीख मांगनेवालों की कतारें दिख जाती है।मटमैले जैसे महिनों से नहीं नहाये हों।चीकट दुर्गन्धयुक्त फटे पुराने चीथड़े कपड़े।किसी की रोने की आवाज़,किसी के कराहने की आवाज़,कोई पुकार.पुकार कर भीख मांगता तो कोई बहुत ही कातर होकर गुहार लगता है।इन्ही भिखारियों के बीच में रेल्वे स्टेशन के ओव्हर ब्रिज पर बैठकर भीख मांगते हुए किशन को शायद चार दशक हो गये।ब्रिज पर भीख मांगने के लिए किशन दादा ने अपना एक निश्चत स्थान बना लिया था।जैसे ही रेल्वे प्लेट फार्म से होकर ऊपर बि्रज पर चढ़ते हैं बिल्कुल सामने ही किशन दादा दिखाई देते हैं।किशन दादा के स्थान पर कोई अन्य भिखारी अतिक्रमण करने की हिम्मत नहीं कर सकता था।अन्य भिखारी किशन दादा से बहुत दूर दूर ही बैठते।उस ब्रिज पर मात्र किशन दादा का ही वर्चस्व रहता था यदि कोई गलती से भी भीख मांगता नज़र आता तो किशन दादा उससे उस दिन की सारी भीख हथिया लेते।उसके भीख मांगने का तरीका भी अन्य भिखारियों की अपेक्षा अलग ही रहता था।अन्य भिखारी उनकी नकल नहीं कर पाते। दाहिना हाथ और बांया पैर वैसे तो बहुत स्वस्थ्य थे लेकिन जब वे भीख मांगने के अपने स्थान पर बैठते तो उन्हे देखकर कोई भी महसूस कर सकता कि वे दाहिने हाथ और बांये पैर से अपाहिज ही है। दाहिना हाथ ढीला कर इस तरह लटकाते कि लगता उनका हाथ वास्तव में पंगु ही है।भीख मांगने की इसी शैली के कारण वे पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से इसी तरह से भीख मांग रहे हैं।चलते समय किशन दादा बांये पैर को घसीटकर चलते और हर किसी को दिखाई देता है जैसे वे वास्तव मे अनाहिज है।यह उनक हुनर था।पांच के पंजे को मैले कुचैले कपड़ों से लपेटकर रस्सी से बांध लिया करते।देखनेवाला दाता उन्हे दखकर भावनावश भीख दे ही देता।चलते वक्त उनके चलने की शैली ऐसी होती कि एक पैर घसीटा जा रहा है और एक हाथ निढाल हुआ जा रहा है।देखते ही तरस आ जता किसी को भी।किशन दादा में एक खासियत यह भी थी कि वे थोड़ी बहुत अंगे्रजी के शब्दों का भी उपयोग बोलचाल में कर लिय करते।उनके अन्य साथी के पूछने पर वे यह कह कर टाल देते कि उन्होने यह अंग्रेजी आने जाने वालों से सुनकर सीखी है किन्तु किशन दादा हरि से कोई बात नहीं छिपाते।हरि ओव्हर ब्रिज के नीचे पायदान के पास बैठकर भीखा मांगा करता और अभी किशनदादा से भीख मांगने के गुर सीख रहा है।हरि अक्सर किशनदादा को अपना गुरू मानता और वह किशनदादा के नक्शे कदम पर चलता।एक दिन यों ही हरि ने किशन दादा को छेड़ा।‘कहाँ तक पढ़े हो दादा’‘ ऐसी बात क्यों करता है रे हरि।क्या कोई भिखारी भी पढ़ा लिखा होता है।’‘ नहीं,बात यह तो नहीं है….फिर भी मन में सवाल उठ ही गया है कि दादा कितनी अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हैं और हाँ…एक दिन तुम कोई अंग्रेजी अखबार ज़ोर ज़ोर से पढ़ रहे थे।’‘सो तूने कैसे जाना।’‘ जब तुम ज़ोर ज़ोर से पढ़ रहे थे तभी टीटी साहब तुम्हारे पास कुर्सी पर बैठे सुन रहे थे और सुन कर खुश हो रहे थे।दादा तुम्हे याद होगा कि टीटी साहब ज़ोरों से खांस थे और तुम पढ़ते हुए थम गए थे।’ ‘मुझे याद नहीं।’
‘ और टी.टी. साहब ने तुम्हे…सोचकर….हाँ,एक का सिक्का भी बख्शीश में दिया था।’
‘ असल में हरि,मैं नौकरी की तलाश में भटक रहा था।डिग्रियाँ ले लेकर कहाँ.कहाँ नहीं भटका,बता नहीं सकता।पर कहीं नौकरी नहीं मिली।एक दिन देखा एक भिखारी पेड़ के नीचे बैठ भीख के पैसे गिन रहा है।बहुत से रूपये थे उस भिखारी के पास,मैने पूछा तो बताने लगा,ये जो लोग नौकरी करते हैं,हम उनसे कहीं ज्यादा कमा लेते हैं।पढ़ाई के बाद नौकरी नहीं मिल पाती तब मजदूरी करनी होती है और मजदूरी में भी इतना नहीं मिल पाता कि घर का खर्च पूरा हो सकें।शहरों में तो भिखारियों के बड़े.बड़े संघ काम करते हैं और भिखारियों की यूनियन भी है।उस भिखारी ने मुझे भीख मांगकर रूपये कमाने का तरीका सिखा दिया।फिर क्या,तब से ही मैं यह धंधा बराबर करता आ रहा हूँ,लेकिन दुःख है,मैं अपने घर नहीं जा सकता और यही का होकर हर गया। लम्बी सांसs लेते हुए किशन दादा टकटकी लगाये आसमान की ओर देखाने लगे।शायद सोच रहे हो कि हमारे देश में इतनी बेरोजगारी है कि शिक्षित लोगों को भी भीख का धंधा dरना पड़ रहा है।किशन दादा ने लम्बा बीड़ी का कश लिया और आसमान में धुआं छोड़ने लगे ।चांदनी छिटक रही थी।किशन दादा की आंखों से दो बूंद आंसू लुढ़ पड़े। पारों को पढ़ाया लिखाया नहीं।क्या पता पढ़ने के बाद पारो के लिए उचित दूल्हा मिलता है या नहीं।इसकी चिन्ता किशन दादा को शुरू से ही थी।किशन दादा ने पारो का ब्याह अपनी ही जमात में करना उचित समझा और पारो के लिए वर तलाशने की जहमत उसे उठानी नहीं पड़ी। हरि,किशन दादा की आंखों में पहले से था ही।हरि,किशन दादा के साथ भीख मांगने की मदद करता था।हरि के मां.बाप नहीं थे जब से हरि ने होश संभाला है तब से किशन दादा ही हरि के सर्वस्व रहे हैं।इसलिए किशन दादा को हरि से अच्छा वर कोई दिखाई नहीं दिया।बेटी.जमाई दोनों हमेशा नज़रों के सामने रहेंगे।हरि,भीख मांगने के बाद रात को घर लौटते समय किशन दादा को सहारा देकर अंधेरे कोने तक ले आता और ज्यों ही अंधेरे में आ जाते थे,हरि पीछे रह जाता था और किशन दादा सरपट आगे निकल जाते थे।किशनदादा अपनी फुर्तीली चाल के कारण हरि से दस कदम आगे ही चलते थे।किशनदादा ने पारो की शादी की बात हरि से ही चलाई क्योंकि हरि का अपना कोई नहीं था जो वे किशन दादा ही थे। ‘हरि…पारों अब सयानी हो गई।सोचता हूँ पारो का ब्याह हो जाय तो कम से कम आराम से मर सकूँ।‘ ‘काका,काहे को परेशान होते हो।तुम आदेश तो दो,हरि पारों के लिए दूल्हा ढूँढ निलकालेगा।‘ ‘ सच हरि।‘ ‘ तो क्या मैं ठिठोली कर रहा हूँ।” ‘ तो बस…मेरी बात मान ले…” ‘ सो क्या काका… ‘ तू ही पारो से ब्याह कर ले।‘ ‘ मैं…और पारो से….क्या कह रहे हो काका।‘ हरि के चेहरे पर विस्मय के भाव तैर आये। ‘ कहीं तुम मेरा मजाक तो नहीं बना रहे हों।‘ ‘ नहीं रे हरि….बस, तू मान जा…..
‘ ठीक है काका।यदि ऐसी ही बात है तो….लेकिन हाँ,एक बात कहूँ काका…ब्याह में तुम मुझे क्या दोगे।”
‘तुझे क्या चाहिए।‘‘दे सकोगे।‘‘तू मांग कर के तो देख।‘‘तो मांग लूँ।‘‘हाँ..हाँ..झिझकता क्यों है।‘‘दहेज दे सकते हो तो मैं तैयार हो जाऊँगा।‘‘दहेज और मेरे पास।‘‘हाँ..बहुत दहेज नहीं बस थोड़ा सा ही देना होगा।‘‘क्या है मेरे पास,तू ही बता।‘‘मुझे दहेज में और कुछ भी नहीं चाहिए।दे सको तो रेल्वे की वह पुलिया दे दो जहाँ बैठकर तुम भीख मांगते हो।‘‘लेकिन….‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं।यदि पारो का ब्याह करना है तो वह पुलिया तो देना ही होगा।‘आखिर किशन दादा को हाँ कहनी ही पड़ती।दूसरे दिन किशन दादा और हरि पुराने कपड़ों को साफ कर पहने और बाज़ार गये।सारा दिन बाजार घूमते रहे।कई दिन बाद दोनों बाजार गए थे पारो के ब्याह के लिए सामान खरीदने।पारो के लिए साड़ी ब्लाउस,सिन्दूर,कागज,पेटीकोट,पतलून और जूते हरि के लिए।पूजा का थोड़ा सा सामान और दो फूलों की माला…बस…। अगले दिन पारो का ब्याह हरि के साथ सारी जमान के सामने हो गया।सभी भिखारियों को किशन दादा ने अच्छे से अच्छा खाना खिलाया।खूब खाये पीये और नाचे गये।किशन दादा ने जमान के सामने ही कहा.. ”आज से मेरी बेटी पारो के ब्याह के मौके पर जमाई हरि को वह रेल्वे का पुलिया दहेज में दे रहा हूँ।यहाँ मैं तीस साल से भीख मांगने का धंधा करता रहा।अब मेरी जगह मेरा जमाई बैठेगा। दूसरे दिन से ही हरि दहेज से प्राप्त रेल्वे ब्रिज पर उसी स्थान पर जा बैठा जहाँ किशन दादा भीख मांगने के लिए बैठा करते थे।टी टी ने किशनदादा की जगह पर दूसरे भिखारी को बैठा देखकर पूछा.. ” तुम यहाँ कैसे बैठे हो,यहाँ तो… ”हाँ,हुजूर मेरे ससुर किशन दादा ने यह पुलिया मुझे शादी में दहेज में दिया है।आज से मैं ही यहाँ बैठकर भीख मांगा करूँगा।‘ टी टी ,हिर का प्रसन्नचित्त चेहरा देख मुस्कराता रह गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें