पगली
पगली जा रही वह न जाने किधर को।
थोडी नाजुक सी थोडी शरमिली सी
लिबास उघडे से कमर चलकीली सी
शरारत करती सी बिखेरती तबस्सुम सी
गुनगुनाती सी नयन मटकाती सी
चली जा रही वह न जाने किधर को।
पगली जा रही वह न जाने किधर को।
चली जा रही वह न जाने किधर को।।
ताजमहल सा हुस्न खूबसूरत उसका
महताब सा दमकता मेहताबे-रूख उसका
गदराया गदराया उसका वह बदन
महकता हुआ जैसे कहते है सन्दल
बलखाती हुई वह चलती है ऐसे
बहारे-बसन्त की मचले हो जैसे
हंसती है ऐसे जैसे झरनों सा झर झर
मचलती है ऐसे जैसे हवाएं हो सरसर
जा रही जैसे नदिया सागर से मिलनेा
पगली जा रही वह न जाने किधर को।
चली जा रही वह न जाने किधर को।।
बडी बदमिजाज पगली इक लडकी
गजलों को गीतो सा गुनगुनाया है करती
गुल चुनती है वह बागानों में हर रोज
साथ कलियों के खिली जा रही है
पेड-पौधों लताओं बहारों को लिए
मिलन पिया से चली जा रही है
हवाओं संग संग उड जाती है वह
दूर गगन से लौट आती है वह
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
गजलों को गीतों सा गुनगुनाया है करती।।
बडी बदहवास पगली इक लडकी
रोती है न वह कभी हंसती है
राह में खडे-खडे वह हमेशा
राह महबूब की वह तकती है
सजाया करती वह रहगुजर पिया की
कलियॉं गुलों को वह बिखराया करती
धोती है ऑंसुओं से राह महबूब की
रोते-रोते नग्में महबूब के गाया वह करती
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
सजायाकरती वह रहगुजर पिया की।।
खत ले आता कासिद कभी तो
खते-महबूब सीने से लगाया करती
रहगीत कहीं से आ रहा हो कभी तो
संदेश महबूब को पहुँचाय वह करती
चॉंद से हैं पूछती वह चॉंदनी है पूछती
हवाओं परिन्दों और घटाओं से वह पूछती
कोई तो संदेशा मेरे महबूब का बताओ
या संदेशा मेरा लेकर कोई जाओ
ये ऑंसू रो-रोकर पुकारा है करते
पहाडों दरियाओं कहीं पता तो बताओ
आ रहा कब मेरा महबूब परदेश से
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
चली जा रही वह न जाने किधर को।।
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
सियातरे सजाती बहारें सजाती
सजधन के सरे-राह बैठ वह जाती
बागाें से कहती नजारों से कहती
राहों से पूछती रहगिरों से पूछती
आज आनेवाला मेरा जाने-महबूब है
खुदा का वास्ता मैंने दिया उसे है
अल्ला को खबर मौला को खबर है
महबूब मेरा आनेवाला इधर है
खुदारा कोई राह रोके न इधर की
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
सितारे सजाती बहारे सजाती।।
हिंडोले में चॉंद के है वह झूलती
संग महबूब के है वह डोलती
चहचहाती है वह मुस्कराती है वह
रंग बहारें के है वह लुटाती
कूकती वह कोयल सी कभी है
रक्स करती वह मयूरा सी कभी है
पुकारा करती है वह नाम ले के महबूब का
बहारों को सितारों को लुटाया है करती
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
रक्स करती वह मयूरा सी कभी है ।।
दौडती है वह धरती से गगन तक
चीखती है वह सितारों से चमन तक
मचलती है वह सारे जहां में मचलकर
आसमां सिर पर उठाकर चलते चली वह
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
दौडती है वह धरती से गगन तक।।
बिखर-बिखर जाती है काली जुल्फें उसकी
बिफर बिफर कर लोटती है जमीं पर यहॉं से वहॉं तक
जाने कैसी है ये चाहत खुदारा
ख्वाब हसीन जाने है कैसे टूटा
सपना वो टूटा जहॉं सारा लुटा
पिया से मिलन का सिलसिला जो टूटा
पहाड उचे चढी कूद नीचे पडी वह
हादासा यहॉं खतम होता नहीं है
गली के जाने किसी मोड पर कभी तो
कल फिर मिलेगी खडी पगली वह लडकी।
बडी खूबसूरत पगली इक लडकी
चली जा रही थी वह न जाने किधर को।।
रविवार, 4 अप्रैल 2010
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